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Achyutanand pandey ki kavita

लोगों से दूर जाने का मन न था मुझे मजबूरी ने कर दिया दोस्तो (पुराने शहर ) से दूर हमें क्या था इसका कारण हम भी यह सोचते हैं खेल खेल में जिंदगी का कुछ तो तोड़ते हैं क्या था क्या है और क्या होगा इसका हमें अनुमान ना होगा कुछ भी होगा पर हमारा घमंड चूर-चूर होगा कुछ भी होगा पर हमारा घमंड अब चूर चूर होगा        Pro- Achyutanand Pandey

मेहनत की उड़ान -आनंद पाण्डेय

जमाना उड़ान देखता है ! पंखों का नहीं...............जनाब ! कामयाबी का शिखर......देखता है ! सच यह जमाना उड़ान....देखता है !! पंखों का नहीं ...............जनाब ! मेहनत का मुकाम........देखता है ! हां यह जमाना उड़ान....देखता है !! उस रात की सजा नहीं....जनाब ! उसे पाई गई लक्ष्य........देखता है ! सच यह जमाना उड़ान....देखता है !! घरों से दूर रहने का दर्द नहीं..जनाब ! उस कुर्बानी से पाई गई शोहरत..देखता है !  हां यह जमाना उड़ान.........देखता है !!  ख्वाबों की उलझी एहसास नहीं...जनाब ! मेहनत से जीती गई बाजी......देखता है ! सच यह जमाना उड़ान........देखता है !! उस ठोकरों का नहीं........जनाब ! उसके बाद का उफान.....देखता है ! सच हां यह जमाना उड़ान देखता है !!.............         -Achyutanand Pandey